मज़दूरों को लाने के साथ उनमें आत्मविश्वास भी जागृत करें
रहीम शेरानी
झाबुआ,11 May 2020
कोरोना महमारी में प्रधानमंत्री के त्वरित लिए गए फैसले लॉकडाउन को विश्व स्तर पर उचित निर्णय के रूप में देखा जा रहा है।
जान है तो जहान है वाली कहावत को चरितार्थ कर देश के प्रधानमंत्री ने भारत की स्वास्थ्य व्यवस्थाओं को देखते हुए लॉक डाउन को ही सही माना।
इस निर्णय के बाद देश थम सा गया हालांकि उस समय देश मे कोरोना के गिने चुने केस ही सामने आये थे।
अब जब की 67 हजार से ज्यादा रजिस्टर्ड केस आ चुके है
देश का अधिकांश हिस्सा खुल चुका है जो आने वाले समय में देश की स्थिति को बिगाड़ भी सकता है
लेकिन इसके अलावा कोई विकल्प भी तो नही रह गया है।
कोरोना महमारी में सबसे ज्यादा पीड़ा उन खाना बदोश मजदूरों को हुई जो काम की तलाश में अपने राज्य को छोड़कर अन्य राज्यों की शरण मे गये थे।
इनमें से अधिकांश दैनिक देहाड़ी मजदूर थे तो अनेक छोटा व्यवसाय करने वाले भी थे।
इन सभी को लॉक डाउन में उसी राज्य में वही रुकना पड़ा जहाँ वे कार्यरत थे।
बड़े छोटे सभी उद्योगों के बन्द होने से इन मजदूरों का वहाँ रुकना मुश्किल हो गया,
नतीज़न एक बार फिर इन सभी का पलायन शुरू हुआ लेकिन इस बार ह्रदय विदारक दृश्यों के साथ नन्हे मासूम बच्चों को गोद में उठाये महिला पुरुष नँगें पैर अपने घरों की ओर चले जा रहे थे। आखिर ये रुकते भी तो क्यों व कितने दिन जब देश के जागरुक मीडिया ने यह दृश्य शासन प्रशासन के सामने उजागर किये तब कही जाकर कुछ राज्यों ने अपने यहाँ के मजदूरों को लाने की सुध ली व इसके लिये लम्बे समय से बन्द पड़ी रेल सेवाओं का भी सहारा लिया।
लेकिन लगता है यह कदम देरी से उठाया गया गलत कदम ही है। कारण जब मजदूरों के पास इन राज्यों में काम नही था व पर्याप्त रोजगार के अवसर भी नही थे तब ही ये काम की तलाश में अन्यत्र गए थे।
अब जबकि पुन बाजार खुल चुके है अनेक उद्योग फैक्ट्रियां भी शुरू हो चुकी है व हो रही है ऐसे में अब इन उद्योगों में काम करने वाले मजदूर नही है।
ऐसे में शासन प्रशासन को इन मजदूरों को लाने के बजाय उनमें विश्वास का अंकुरण करना था राष्ट्रीय मानवाधिकार एवं महिला बाल विकास आयोग व आल इण्डिया जैन जर्नलिस्ट एसोसिएशन (आईजा) के प्रदेशाध्यक्ष पवन नाहर व पत्रकार रहीम शेरानी ने केंद्र व मध्यप्रदेश शासन से अनुरोध किया है
कि आज देश की अर्थव्यवस्था को पुनः संजीवनी प्रदान करने के लिये देश के किसान व मजदूर ही सक्षम है
यदि उनमें विश्वास जगाया जाए। उन्हें अब लाने उनके कर्म क्षेत्र से लाने की आवश्यकता नही है अपितु आवश्यकता है उन्हें काम की आजादी देने की।
वैसे भी यदि कोरोना आंकड़ो की बात की जाए तो यह संक्रमण इन मेहनतकश मजदूरों की अपेक्षा आराम करने वाले अमीरों में तेजी से फैला है हालांकि यह बीमारी किसी को भी हो सकती है लेकिन सच्चाई तो यही है कि यह अमीरों की ही बीमारी है।
ऐसे में शासन प्रशासन को चाहिये की देश के सभी राज्यों में स्थापित उद्योगों में काम करने वालें मजदूरों में विश्वास जगाये व उन्हें वहाँ काम करने की आजादी भी दी जाए।
सभी उद्योग कम्पनी को भी चाहिये कि जैसे अनेक सामाजिक संगठन आज देश सेवा में आगे आये है ऐसे में वह अपने यहाँ कार्यरत मजदूरों की स्वयं से चिंता करें व उन्हें हर सम्भव मदद देकर उन्हें रोकने का प्रयास करें अन्यथा उद्योग तो शुरू हो जाएंगे वही एक माह के बाद इन मज़दूरों का आर्थिक संकट इन्हें एक बार फिर पलायन के लिये मजबूर कर देगा व शासन प्रशासन मूक दर्शक बन कर देखने के अलावा कुछ नही कर पायेगा।
रहीम शेरानी
झाबुआ,11 May 2020
कोरोना महमारी में प्रधानमंत्री के त्वरित लिए गए फैसले लॉकडाउन को विश्व स्तर पर उचित निर्णय के रूप में देखा जा रहा है।
जान है तो जहान है वाली कहावत को चरितार्थ कर देश के प्रधानमंत्री ने भारत की स्वास्थ्य व्यवस्थाओं को देखते हुए लॉक डाउन को ही सही माना।
इस निर्णय के बाद देश थम सा गया हालांकि उस समय देश मे कोरोना के गिने चुने केस ही सामने आये थे।
अब जब की 67 हजार से ज्यादा रजिस्टर्ड केस आ चुके है
देश का अधिकांश हिस्सा खुल चुका है जो आने वाले समय में देश की स्थिति को बिगाड़ भी सकता है
लेकिन इसके अलावा कोई विकल्प भी तो नही रह गया है।
कोरोना महमारी में सबसे ज्यादा पीड़ा उन खाना बदोश मजदूरों को हुई जो काम की तलाश में अपने राज्य को छोड़कर अन्य राज्यों की शरण मे गये थे।
इनमें से अधिकांश दैनिक देहाड़ी मजदूर थे तो अनेक छोटा व्यवसाय करने वाले भी थे।
इन सभी को लॉक डाउन में उसी राज्य में वही रुकना पड़ा जहाँ वे कार्यरत थे।
बड़े छोटे सभी उद्योगों के बन्द होने से इन मजदूरों का वहाँ रुकना मुश्किल हो गया,
नतीज़न एक बार फिर इन सभी का पलायन शुरू हुआ लेकिन इस बार ह्रदय विदारक दृश्यों के साथ नन्हे मासूम बच्चों को गोद में उठाये महिला पुरुष नँगें पैर अपने घरों की ओर चले जा रहे थे। आखिर ये रुकते भी तो क्यों व कितने दिन जब देश के जागरुक मीडिया ने यह दृश्य शासन प्रशासन के सामने उजागर किये तब कही जाकर कुछ राज्यों ने अपने यहाँ के मजदूरों को लाने की सुध ली व इसके लिये लम्बे समय से बन्द पड़ी रेल सेवाओं का भी सहारा लिया।
लेकिन लगता है यह कदम देरी से उठाया गया गलत कदम ही है। कारण जब मजदूरों के पास इन राज्यों में काम नही था व पर्याप्त रोजगार के अवसर भी नही थे तब ही ये काम की तलाश में अन्यत्र गए थे।
अब जबकि पुन बाजार खुल चुके है अनेक उद्योग फैक्ट्रियां भी शुरू हो चुकी है व हो रही है ऐसे में अब इन उद्योगों में काम करने वाले मजदूर नही है।
ऐसे में शासन प्रशासन को इन मजदूरों को लाने के बजाय उनमें विश्वास का अंकुरण करना था राष्ट्रीय मानवाधिकार एवं महिला बाल विकास आयोग व आल इण्डिया जैन जर्नलिस्ट एसोसिएशन (आईजा) के प्रदेशाध्यक्ष पवन नाहर व पत्रकार रहीम शेरानी ने केंद्र व मध्यप्रदेश शासन से अनुरोध किया है
कि आज देश की अर्थव्यवस्था को पुनः संजीवनी प्रदान करने के लिये देश के किसान व मजदूर ही सक्षम है
यदि उनमें विश्वास जगाया जाए। उन्हें अब लाने उनके कर्म क्षेत्र से लाने की आवश्यकता नही है अपितु आवश्यकता है उन्हें काम की आजादी देने की।
वैसे भी यदि कोरोना आंकड़ो की बात की जाए तो यह संक्रमण इन मेहनतकश मजदूरों की अपेक्षा आराम करने वाले अमीरों में तेजी से फैला है हालांकि यह बीमारी किसी को भी हो सकती है लेकिन सच्चाई तो यही है कि यह अमीरों की ही बीमारी है।
ऐसे में शासन प्रशासन को चाहिये की देश के सभी राज्यों में स्थापित उद्योगों में काम करने वालें मजदूरों में विश्वास जगाये व उन्हें वहाँ काम करने की आजादी भी दी जाए।
सभी उद्योग कम्पनी को भी चाहिये कि जैसे अनेक सामाजिक संगठन आज देश सेवा में आगे आये है ऐसे में वह अपने यहाँ कार्यरत मजदूरों की स्वयं से चिंता करें व उन्हें हर सम्भव मदद देकर उन्हें रोकने का प्रयास करें अन्यथा उद्योग तो शुरू हो जाएंगे वही एक माह के बाद इन मज़दूरों का आर्थिक संकट इन्हें एक बार फिर पलायन के लिये मजबूर कर देगा व शासन प्रशासन मूक दर्शक बन कर देखने के अलावा कुछ नही कर पायेगा।