पाकिस्तान से आया टिड्डियों का दल भारत के लिए कितना बड़ा ख़तरा?
TCS News Network
27 May 2020
पाकिस्तान से आए रेगिस्तानी टिड्डियों के विशाल झुंड पश्चिमी और मध्य भारत में फसलों को नष्ट कर रहे हैं.विशेषज्ञों का मानना है कि बीते तीन दशकों में टिड्डियों का यह अब तक का सबसे बड़ा हमला है.ड्रोन, ट्रैक्टर और कारों की मदद से इन टिड्डियों के इलाक़ों की पहचान की जा रही है और कीटनाशक का छिड़काव करके उन्हें भगाने की कोशिश की जा रही है.हालांकि टिड्डियों के ये दल अभी तक 50 हज़ार हेक्टेयर कृषि-भूमि को बर्बाद कर चुके हैं.सरकार के संगठन टिड्डी दल चेतावनी संस्थान यानी लोकस्ट वार्निंग ऑर्गेनाइज़ेशन के डिप्टी डायरेक्टर के एल गुर्जर ने न्यूज़ एजेंसी एएफ़पी को बताया, “प्रति वर्ग किलोमीटर के दायरे में फैले आठ से दस टिड्डियों के दल राजस्थान और मध्य प्रदेश के कुछ हिस्सों में सक्रिय हैं. टिड्डियों के हमले से दोनों राज्यों में मौसमी फसलों को बड़े पैमाने पर नुक़सान पहुँचा है. इसका नतीजा ये हुआ है कि कई किसान तबाह हो गए हैं.टिड्डियों का ये हमला ऐसे समय में हुआ है जब देश पहले से ही कोरोना वायरस महामारी की चपेट में हैं और इससे जूझ रहा है.
राजस्थान में प्रवेश करने से पहले टिड्डियों के ये दल पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में भी भारी तबाही मचा चुके हैं.डिप्टी डायरेक्टर गुर्जर के मुताबिक़,”टिड्डियों के कुछ छोटे दल भारत के कुछ अन्य राज्यों में भी सक्रिय हैं.”संयुक्त राष्ट्र के फ़ूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गेनाइज़ेशन के मुताबिक़, चार करोड़ की संख्या वाला टिड्डियों का एक दल 35 हज़ार लोगों के लिए पर्याप्त खाद्य को समाप्त कर सकता है.राजस्थान की राजधानी जयपुर के रिहायशी इलाक़ों में भी टिड्डियों की भरमार देखने को मिली.टिड्डियों को भगाने के लिए लोगों ने अलग-अलग तरीके अपनाए.
कुछ ने कीटनाशक का छिड़काव किया तो किसी ने बर्तन बजाकर टिड्डियों को भगाने की कोशिश की.विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि जून में यह स्थिति और गंभीर हो सकती है.संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, भारी बारिश और चक्रवात ने पिछले साल की शुरुआत में टिड्डियों के प्रजनन में बढ़ोत्तरी की और इस वजह से अरब प्रायद्वीप पर टिड्डियों की आबादी में काफ़ी तेज़ी से वृद्धि हुई भारत ने साल 1993 के बाद से अब तक कभी भी इतने बड़े स्तर पर टिड्डों का हमला नहीं देखा था.पाकिस्तान की सीमा से लगे राजस्थान के कुछ हिस्सों में हर साल टिड्डियों के हमले में फसलों को नुक़सान होता रहा है.लेकिन इस बार यह राजस्थान की सीमा से निकलकर उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश तक पहुंच गए हैं जो अपने आप में एक दुर्लभ बात है.लोक्सट वॉर्निंग सेंटर का कहना है कि हवा की गति और दिशा के कारण ये दक्षिण-पश्चिम की ओर बढ़ रहे हैं.
महामारी कैसे बन जाते हैं रेगिस्तानी टिड्डे?
टिड्डे की एक प्रजाति रेगिस्तानी टिड्डा सामान्यत: सूनसान इलाक़ों में पाई जाती है. ये एक अंडे से पैदा होकर पंखों वाले टिड्डे में तब्दील होता है.
लेकिन कभी-कभी रेगिस्तानी टिड्डा ख़तरनाक रूप ले लेता है.
जब हरे-भरे घास के मैदानों पर कई सारे रेगिस्तानी टिड्डे इकट्ठे होते हैं तो ये निर्जन स्थानों में रहने वाले सामान्य कीट-पतंगों की तरह व्यवहार नहीं करते हैं.
बल्कि एक साथ मिलकर भयानक रूप अख़्तियार कर लेते हैं. इस फेज़ में टिड्डे रंग बदलकर बड़े समूहों का रूप ले लेते हैं.
आसमान में उड़ते हुए इन टिड्डी दलों में दस अरब टिड्डे हो सकते हैं. ये सैकड़ों किलोमीटर क्षेत्र में फैले हो सकते हैं.
ये झुंड एक दिन में 200 किलोमीटर का रास्ता तय कर सकते हैं.
एक दिन में टिड्डों के ये झुंड अपने खाने और प्रजनन के मकसद से इतने बड़े क्षेत्र में लगी फसल को नुक़सान पहुंचा सकते हैं.
संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन के मुताबिक़, एक औसत टिड्डी दल ढाई हज़ार लोगों का पेट भरने लायक अनाज चट कर सकता है.संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक़, साल 2003-05 के बीच में भी टिड्डों की संख्या में ऐसी ही बढ़ोतरी देखी गई थी जिससे पश्चिमी अफ्रीका की खेती को ढाई अरब डॉलर का नुकसान हुआ था.
लेकिन 1930, 1940 और 1950 में भी टिड्डों की संख्या में भी बढ़ोतरी देखी गई थी.
कुछ झुंड इतने ख़तरनाक थे जो कई क्षेत्रों तक फैल गए और उनकी संख्या की वजह से उनके हमले को प्लेग कहा जाता है.
TCS News Network
27 May 2020
पाकिस्तान से आए रेगिस्तानी टिड्डियों के विशाल झुंड पश्चिमी और मध्य भारत में फसलों को नष्ट कर रहे हैं.विशेषज्ञों का मानना है कि बीते तीन दशकों में टिड्डियों का यह अब तक का सबसे बड़ा हमला है.ड्रोन, ट्रैक्टर और कारों की मदद से इन टिड्डियों के इलाक़ों की पहचान की जा रही है और कीटनाशक का छिड़काव करके उन्हें भगाने की कोशिश की जा रही है.हालांकि टिड्डियों के ये दल अभी तक 50 हज़ार हेक्टेयर कृषि-भूमि को बर्बाद कर चुके हैं.सरकार के संगठन टिड्डी दल चेतावनी संस्थान यानी लोकस्ट वार्निंग ऑर्गेनाइज़ेशन के डिप्टी डायरेक्टर के एल गुर्जर ने न्यूज़ एजेंसी एएफ़पी को बताया, “प्रति वर्ग किलोमीटर के दायरे में फैले आठ से दस टिड्डियों के दल राजस्थान और मध्य प्रदेश के कुछ हिस्सों में सक्रिय हैं. टिड्डियों के हमले से दोनों राज्यों में मौसमी फसलों को बड़े पैमाने पर नुक़सान पहुँचा है. इसका नतीजा ये हुआ है कि कई किसान तबाह हो गए हैं.टिड्डियों का ये हमला ऐसे समय में हुआ है जब देश पहले से ही कोरोना वायरस महामारी की चपेट में हैं और इससे जूझ रहा है.
महामारी कैसे बन जाते हैं रेगिस्तानी टिड्डे?
टिड्डे की एक प्रजाति रेगिस्तानी टिड्डा सामान्यत: सूनसान इलाक़ों में पाई जाती है. ये एक अंडे से पैदा होकर पंखों वाले टिड्डे में तब्दील होता है.
लेकिन कभी-कभी रेगिस्तानी टिड्डा ख़तरनाक रूप ले लेता है.
जब हरे-भरे घास के मैदानों पर कई सारे रेगिस्तानी टिड्डे इकट्ठे होते हैं तो ये निर्जन स्थानों में रहने वाले सामान्य कीट-पतंगों की तरह व्यवहार नहीं करते हैं.
बल्कि एक साथ मिलकर भयानक रूप अख़्तियार कर लेते हैं. इस फेज़ में टिड्डे रंग बदलकर बड़े समूहों का रूप ले लेते हैं.
आसमान में उड़ते हुए इन टिड्डी दलों में दस अरब टिड्डे हो सकते हैं. ये सैकड़ों किलोमीटर क्षेत्र में फैले हो सकते हैं.
ये झुंड एक दिन में 200 किलोमीटर का रास्ता तय कर सकते हैं.
एक दिन में टिड्डों के ये झुंड अपने खाने और प्रजनन के मकसद से इतने बड़े क्षेत्र में लगी फसल को नुक़सान पहुंचा सकते हैं.
संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन के मुताबिक़, एक औसत टिड्डी दल ढाई हज़ार लोगों का पेट भरने लायक अनाज चट कर सकता है.संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक़, साल 2003-05 के बीच में भी टिड्डों की संख्या में ऐसी ही बढ़ोतरी देखी गई थी जिससे पश्चिमी अफ्रीका की खेती को ढाई अरब डॉलर का नुकसान हुआ था.
लेकिन 1930, 1940 और 1950 में भी टिड्डों की संख्या में भी बढ़ोतरी देखी गई थी.
कुछ झुंड इतने ख़तरनाक थे जो कई क्षेत्रों तक फैल गए और उनकी संख्या की वजह से उनके हमले को प्लेग कहा जाता है.