राष्ट्र संघ में रोहिंग्या मुसलमानों के अधिकारों के हनन की निंदा
29-Dec-2019
Sajjad Ali Nayani
म्यांमार में रोहिंग्या मुस्लिमों पर अत्याचार और उनके अधिकारों के हनन के ख़िलाफ़ संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा में एक प्रस्ताव पारित हो गया।
संयुक्त राष्ट्र संघ के 193 सदस्य देशों में से 134 ने इस प्रस्ताव का समर्थन और 9 ने विरोध किया जबकि 28 देश वोटिंग में शामिल नहीं हुए। प्रस्ताव में रोहिंग्या समेत सभी अल्पसंख्यकों पर अत्याचार रोकने और उन्हें न्याय दिलाने की मांग की गई है। हालांकि म्यांमार इस प्रस्ताव को मानने के लिए क़ानूनी तौर पर बाध्य नहीं होगा लेकिन इससे पता चलता है कि इस मुद्दे पर दुनिया की सोच क्या है।
प्रस्ताव में म्यांमार की सरकार से मांग की गई है कि वह रोहिंग्या मुसलमानों व अन्य अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ नफ़रत फैलाना बंद करे। महासभा की बैठक में म्यांमार के राजदूत हाऊ डो सुआल ने प्रस्ताव की आलोचना की। उन्होंने कहा कि यह मानवाधिकार नियमों को लेकर दोहरे मापदंड और भेदभावपूर्ण रवैये का उदाहरण है और इसमें रोहिंग्या बहुल्य राख़ाइन प्रांत की समस्या का समाधान नहीं है। उन्होंने कहा कि म्यांमार पर अवांछित राजनैतिक दबाव बनाने के लिए प्रस्ताव पेश किया गया है।
ज्ञात रहे कि हाल ही में रोहिंग्या मुसलमानों पर म्यांमार के सुरक्षा बलों और सेना के अत्याचारों का मुद्दा इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस (आईसीजे) में दक्षिण अफ़्रीक़ी देश गाम्बिया ने उठाया था। उसने 12 अन्य मुस्लिम देशों के साथ मिलकर इस मुद्दे को आईसीजे के समक्ष रखा था। इसी महीने नोबेल पुरस्कार विजेता आंग सान सू ची ने आईसीजे में म्यांमार का पक्ष रखा था। उन्होंने कोर्ट को बताया कि राख़ाइन में हुई हिंसा एक आतंरिक विवाद था। वर्ष 2017 में रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ़ म्यांमार के सैनिकों और चरमपंथी बौद्धों की कार्यवाहियों में हज़ारों निर्दोष लोग मारे गए थे। इसके बाद रोहिंग्या मुस्लिम बड़ी संख्या में बांग्लादेश व अन्य देशों की ओर पलायन कर गए हैं।
29-Dec-2019
Sajjad Ali Nayani
म्यांमार में रोहिंग्या मुस्लिमों पर अत्याचार और उनके अधिकारों के हनन के ख़िलाफ़ संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा में एक प्रस्ताव पारित हो गया।
संयुक्त राष्ट्र संघ के 193 सदस्य देशों में से 134 ने इस प्रस्ताव का समर्थन और 9 ने विरोध किया जबकि 28 देश वोटिंग में शामिल नहीं हुए। प्रस्ताव में रोहिंग्या समेत सभी अल्पसंख्यकों पर अत्याचार रोकने और उन्हें न्याय दिलाने की मांग की गई है। हालांकि म्यांमार इस प्रस्ताव को मानने के लिए क़ानूनी तौर पर बाध्य नहीं होगा लेकिन इससे पता चलता है कि इस मुद्दे पर दुनिया की सोच क्या है।
प्रस्ताव में म्यांमार की सरकार से मांग की गई है कि वह रोहिंग्या मुसलमानों व अन्य अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ नफ़रत फैलाना बंद करे। महासभा की बैठक में म्यांमार के राजदूत हाऊ डो सुआल ने प्रस्ताव की आलोचना की। उन्होंने कहा कि यह मानवाधिकार नियमों को लेकर दोहरे मापदंड और भेदभावपूर्ण रवैये का उदाहरण है और इसमें रोहिंग्या बहुल्य राख़ाइन प्रांत की समस्या का समाधान नहीं है। उन्होंने कहा कि म्यांमार पर अवांछित राजनैतिक दबाव बनाने के लिए प्रस्ताव पेश किया गया है।
ज्ञात रहे कि हाल ही में रोहिंग्या मुसलमानों पर म्यांमार के सुरक्षा बलों और सेना के अत्याचारों का मुद्दा इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस (आईसीजे) में दक्षिण अफ़्रीक़ी देश गाम्बिया ने उठाया था। उसने 12 अन्य मुस्लिम देशों के साथ मिलकर इस मुद्दे को आईसीजे के समक्ष रखा था। इसी महीने नोबेल पुरस्कार विजेता आंग सान सू ची ने आईसीजे में म्यांमार का पक्ष रखा था। उन्होंने कोर्ट को बताया कि राख़ाइन में हुई हिंसा एक आतंरिक विवाद था। वर्ष 2017 में रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ़ म्यांमार के सैनिकों और चरमपंथी बौद्धों की कार्यवाहियों में हज़ारों निर्दोष लोग मारे गए थे। इसके बाद रोहिंग्या मुस्लिम बड़ी संख्या में बांग्लादेश व अन्य देशों की ओर पलायन कर गए हैं।